वक़्त कहा है - एक कहानी ऐसी भी जो दिल को छू जाए | Waqt Kaha Hai

वक़्त कहा है | वक़्त और बिखरे रिस्तो की डोर में पिरोयी ये प्रेणादायक कहानी जरूर पढ़े

नमस्कार पाठको,आज आप को एक ऐसी कहानी सुनाता हु जो वक़्त और उम्र के संजोग से जुडी है ये समाज के एक ऐसे पहलु को दर्शाती है जो किसी के भी साथ हो सकता है। तो चलिए कहानी शुरू करते है। 

Waqt Kaha Hai

सुधीर बाबू जिनकी उम्र करीब करीब 60 वर्ष है सुधीर बाबू की पत्नी का 5 साल पहले ही देहांत हो चूका है उनके दो बच्चे है मोहित नाम का लड़का और कल्पना नाम की लड़की,आज सुधीर बाबू के पास वक़्त ही वक़्त है लेकिन एक समय था जब उन्होंने वक़्त के हर पल को अपनी व्यवस्थता और कमाने में खर्च किया ताकि अपने परिवार को एक अच्छी जीवनशैली दे पाए उसके बावजूद उन्होंने अपने परिवार को पूरा समय दिया । कमाया तो बहुत कुछ लेकिन उसके बाद भी आज वो अकेले है क्या यही जीवनशैली पाने के लिए उन्होंने उम्र के एक ऐसे दौर को जिया था,

लड़के को पढ़ा लिखा कर डॉक्टर बना दिया जो घर से काफी दूर मुंबई के एक नामी हॉस्पिटल में है लकड़ी पुणे से इंजीनियरिंग कर रही है लेकिन उनके पास इतना भी समय नहीं की बूढ़े बाप की खबर ली जाए जब भी बात करने के लिए सुधीर बाबू फ़ोन करते है उन्हें बस यही सुनने के लिए मिलता है वक़्त कहा है। 

Emotional Story In Hindi

जब जवानी में सुधीर बाबू ऑफिस से घर आते थे तो बच्चो के साथ वक़्त बिताते थे जिससे परिवार में खुशिया ही खुशिया थी बच्चो के साथ खेलना बाते करने से हर समस्या खुद ब खुद ख़तम हो जाती थी ये रोज की बात थी सुधीर बाबू ने अपने परिवार को अपनी व्यवस्थता के साथ पूरा समय दिया लेकिन आज उनकी आँखे नम हो जाती है ये सब सोच कर,सवाल ये है क्या कोई अकेले रहना चाहता है खासतौर पर वो इंसान जो पूरी ज़िन्दगी ये सोच के जिया की अपना बुढ़ापा आराम और हसी ख़ुशी से बीत जायेगा। आज सुधीर बाबू की तबियत सुबहे से थोड़ा ठीक नहीं है उन्हें थोड़ा कमजोरी है अब जाहिर सी बात है अकेले इंसान के लिए इस पड़ाव पे बिना सहारे चलना कठिन है लेकिन सुधीर बाबू ने ज़िन्दगी में कभी हार नहीं मानी ना आज ना तब जब पूरे घर की जिमेदारियो को संभाला।
अकेले में बैठे वो सोच रहे है की ज़िन्दगी ने क्या कुछ दिया क्या कुछ छीना है।  

क्या ये अंतिम समय की बात है उन्होंने हर कदम बच्चो के लिए कितना त्याग किया आज बच्चे जब ये कह के बात को टाल देते है की वक़्त नहीं हैतो जाहिर सी बात है उस इंसान पे क्या बीत रही होगी जो वह अकेला बैठा आपसे उम्मीद लगाए बैठा है।दोनों बच्चे अपनी जिंदगी में इतना मसगुल है की बूढ़े बाप से बात करने का समय तक नहीं ,और वो बूढ़ा बाप हर पल उन बच्चो के फ़ोन का इंतज़ार करता है की कभी तो फ़ोन करेंगे कभी तो थोड़ा समय उसे भी देंगे। 

ज़िन्दगी और समय कहा रुकने वाला है समय बीतता गया और सुधीर बाबू की तबियत बिगड़ने लगी इसकी सूचना उनके बच्चो को दे दी गयी,दोनों बच्चे पिता का हाल जान्ने घर पहुंचे सुधीर बाबू सोये थे अपने बच्चो की आवाज सुन कर उन्होंने आँखे खोली उन्हें देखते ही उनकी आँखों से आंसु निकलने लगे। वो इंसान जो आज तक ज़िन्दगी में कभी नहीं हारा आज वो हार गया था अंत समय में अपने बच्चो को उसने सिर्फ यही कहा - वक़्त के साथ अपनों को लेकर चलना नहीं तो एक समय ऐसा आएगा की तुम खुद भी अकेले हो जाओगे।  

डर की दास्तान :  Dar Ki Daastaan - Horror story in hindi 

Hindi Horror True Story : एक छलावे की कहानी - Chalawa - Hindi Horror Story Kahani 

कहनी छोटी मगर प्रेणादायक है आज हम लोग धन को ही सब कुछ मान बैठे है पारिवारिक मूल्यों को धन से नहीं ख़रीदा जा सकता है ,ना ही माँ बाप के प्यार को ,घर चलाने के लिए धन की जरूरत होती है लेकिन रिश्तो को निभाने के लिए प्यार की,आज वक़्त बदल गया है रिश्ते सिमट गए है
वक़्त आज भी अपनी रफ़्तार से चल रहा है बस इंसान बदल गया है जरुरत है बिखरे रिश्तो को एक डोर में पिरोने की।हो सकता है मेरी इस बात से कुछ लोग सहमत न हो लेकिन सच्चाई को कितना भी मुखौटा चढ़ा दो वो नहीं बदल सकती।
दोस्तों अगर आपको ये कहानी अच्छी लगी तो इसे शेयर जरूर करे क्या पता इस कहानी से कही किसी और सुधीर बाबू जैसे इंसान की ज़िन्दगी में रंग आ जाए।

Real Story In Hindi

रोहन ने एक फैसला किया और अपनी पत्नी से कहा तुम चाहो तो अपने मायके जा सकती हो लेकिन मुझे मेरी माँ से दूर नहीं कर सकती तुम मुझे चाहे कही ले जाओ लेकिन माँ हमेसा मेरे साथ ही रहेगी।

 इतना सुनते ही रोहन की पत्नी अपना सामान उठा के जाने लगी तब माँ ने अपनी बहु से सिर्फ इतना ही कहा - बेटी वक़्त कभी नहीं ठहरता जहा जिस पड़ाव पे आज में हु कल तुम भी होगी इतना सी बात ने बहु की आँखे खोल दी उसे अपने किये पे बहुत सर्मिंदगी होने लगी वो पश्चाताप से भर गयी,उसने माँ से माफ़ी मांगी और उसे आज इस रिश्ते की समझ आयी की ससुराल में सास ही माँ है और बेटी का ससुराल ही उसका घर है

आज भी माँ रोज रोहन को सुबह आवाज लगाती है आज भी रोहन नहा के ऑफिस के लिए तैयार हो के नाश्ता करने जाता है लेकिन आज वो माँ के साथ नाश्ता कर रहा है बाबूजी पास में बैठे अखबार पढ़ रहे है लेकिन आज रसोईघर की तरफ माँ नहीं उसकी पत्नी जा रही है यही विधि का विधान है और यही सच्चे रिस्तो का मोल ""माँ का देखा सपना सही मायने में आज सच हो चुका है ""




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