देशप्रेम और वीरता की अद्भुत कहानी : DeshBhakti Kahani | Desh Bhakti Story In Hindi

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DeshBhakti Kahani


देशभक्ति हर इंसान की पहचान है आप हम जिस देश में रहते है अगर हम उसके लिए वफादार नहीं तो हमे उस देश में रहने का कोई हक़ नहीं है सबसे पहले देश है यही तो पहचान है। आज की ये कहानी  ऐसे ही देशभक्त सिपाही की है जो अपनी जान की परवाह किये बगैर शहीद हो गया लेकिन दुश्मनो को उनके नापाक मंसूबो में कामयाब नहीं होने दिया। एक 19 साल का लड़का कैसे अपने अदम्य साहस के बलबूते दुश्मनो से लड़ गया और वीरगति को प्राप्त कर गया आप को इस कहानी के माध्यम से बताते है। 

राकेश  जो अपने माता पिता का इकलौता बेटा था वह बचपन से ही बहुत सीधा था कभी किसी से कोई लड़ाई झगड़ा नहीं और ना ही कभी उसकी कोई शिकायत उसके घर तक पहुंची गांव में सब लोग उसे अच्छा मानते थे राकेश ने अपनी पढाई गांव के ही स्कूल से की जैसे जैसे वह बड़ा होता गया देश के लिए कुछ कर जाने की भावना ने उसके अंदर जन्म लिया। जब वह दसवीं में पंहुचा तब एक बार उसने कुछ सिपाहियों को देखा जो अपनी ट्रेनिंग के दौरान अपने टास्क को पूरा करने में लगे थे। ये ही वो दिन था जब उसने सेना में जाकर देश की सेवा करने का इरादा बना लिया। अब वह पूरा दिन स्कूल में और सुबह साम खुद को मजबूत बनाने के लिए मेहनत करने लगा  दौरान वो उन लड़को  मिलता था जो फ़ौज की भर्ती में जाया करते थे। 

समय के साथ साथ उसे दसवीं की परीक्षा पास कर ली अभी वह केवल 17 साल का था लेकिन फ़ौज में जाने के लिए उम्र साढ़े 17 थी तो इस समय उसने काफी मेहनत की पहली बार जब वह फ़ौज की भर्ती में गया तो उसने सारे टेस्ट पास कर लिए और उसका चयन हो गया। ये राकेश के लिए उसकी ज़िन्दगी का सबसे बड़ा ख़ुशी का पल था क्योकि फ़ौज में जाकर देश सेवा करने का उसका सपना पूरा हो चुका था। 

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अपने माता पिता का आशीर्वाद लेकर वह फ़ौज की ट्रेनिंग के लिए चला गया। समय अपनी रफ़्तार से बड़ा चला जा रहा था वो दिन भी आ गया जब वह अपनी ट्रेनिंग पूरी कर फ़ौज का सिपाही बन गया। अब छुट्टी जाने का समय था ट्रेनिंग के बाद उसे 30 दिन की छुट्टी मिली थी। छुट्टी के दिन कैसे बीते ये पता ही नहीं चला। 

छुट्टी पूरी कर वह अपनी पहली पोस्टिंग पठानकोट जम्मू चला गया। राकेश बहुत उत्सुक था पहली बार वह घर से बाहर इतनी दूर बॉर्डर पर आया था वो जिस कंपनी में था उन्हें अकसर रात में किसी भी समय गांव में पेट्रोलिंग के लिए जाना पड़ता था।छोटी मोटी घटनाएं वहा अक्सर होती रहती थी वो लोग अब आदि हो चले थे इन चीजों के। 

बरसात की एक रात में वो लोग पेट्रोलिंग कर अपने शिविर मे पहुंचे ही थे की किसी खबरी से उन्हें पता चलता है की गांव में कुछ अनजान लोग देखे गए है। जो गांव के बीचो बीच बने एक घर मे है। वो लोग जल्दी से अपने  हथियारों के साथ गांव की और निकल पड़ते है। जैसे ही वो लोग उस घर की घेरा बंदी करते है उन पर दुश्मन फायरिंग करने लग जाते है राकेश के लगभग सभी साथी इस फायरिंग मे घायल हो चुके होते है दुश्मन की ओर से बहुत बड़ी फायरिंग हुवी, उस सेक्शन का प्रतिनिधित्व कर रहे हवलदार साहब भी इस फायरिंग में बुरी तरह घायल हो चुके थे ये ऐसा पल था जब राकेश के समझ मे नहीं आ रहा था की वो क्या करे हवलदार साहब ने अपने सेक्शन से कहा जो जहा है वही रहे  कोई हरकत नहीं करेगा जब तक मदद नहीं आती ,करीब 1 घंटे का समय बीत चुका था उसके ज़्यदातर साथी शहीद हो चुके थे जो बचे थे वो इस तरह घायल थे कि वो अपनी बन्दूक भी नहीं उठा पा रहे थे।  कुछ कुछ समय बाद दुश्मनो की आवाज सुनाई देने लगी जो इस जगह से भागने की कोशिस करने लगे। दुश्मन ये नहीं जानता था की एक सिपाही अभी जिन्दा है। 

यही वो पल था जो एक साधारण इंसान को वीर की उपाधि देता है राकेश ने देखा की दो लोग सीढ़ियों से उतर रहे है राकेश ने उनपर गोलिया बरसा दी तभी एक बार फिर घर से आतंकवादियों ने फायरिंग करना शुरू कर दिया। आतंकवादियों के मन मे डर था ना जाने बाहर कितने लोग है इसी डर का फायदा राकेश ने उठाया। 

जब फायरिंग थोड़ा कम हुवी राकेश ने दबे पाँव उस घर की ओर अपने कदम बढ़ाये ये समय राकेश के लिए करो या मरो वाला था इनकी टुकड़ी जो पूरी तरह घायल थी उन्हें अभी मदद मिलना भी मुश्किल था।  राकेश ने अब ठान लिया था की जो भी होगा देखा जाएगा वह सीढ़ियों पर चढ़ने लगा जैसे ही वह ऊपर पंहुचा उस पर फिर फायरिंग आने लगी उसने खुद को वही पर रोका और फायरिंग के बंद होने का इंतज़ार किया जैसे ही दुश्मन की बन्दूक शांत हुवी राकेश घर के अंदर घुस गया और फायरिंग करने लगा इसमें एक और आतंकवादी मारा गया लेकिन अब राकेश को गोली लग चुकी थी क्योकि एक आतंवादी दूसरे कमरे से लगातार फायरिंग कर रहा था । 

राकेश वही जमीन पर गिर पड़ा राकेश को जमीन में गिरता देख वह आतंकवादी कमरे से बाहर आया और राकेश को लातो से मारने लगा राकेश बहुत फुर्ती के साथ उसके पाँव को पकड़कर उसे भी जमीन में गिरा देता है
और उस पर वार करता है कुछ देर तक हुवी हाथापाई में राकेश उसे खुद से दूर धक्का देकर अपनी बन्दूक उठाता है और उस पर ताबरतोड़ फायरिंग करता है सारे आतंकवादी मारे गए लेकिन अब राकेश की साँसे भारी होने लगी और कुछ देर बाद यह वीर वीरगति को प्प्राप्त हो जाता है कुछ समय बाद वहा दूसरा सैक्शन पहुँचता है जब उन्हें  इस 19 साल के लड़के की वीरता पता चलती तो सब उसे सलामी देते है। 

कहानी की सीख ( Moral Of The Story )

कद मायने नहीं रखता ना ही उम्र देशप्रेम की भावना खुद में एक जज़्बा है जो हर मुश्किल परिस्थिति में आपको आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता है। 

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